चुनौतियां अभी बाकी हैं परंतु परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए अच्छी खबर है
रमेश जौरा द्वारा
बर्लिन (आईडीएन) – परमाणु निरस्त्रीकरण के मोर्चे पर अनेक अच्छी खबरें हैं लेकिन बम पर प्रतिबंध लगाने का अभियान चलाने वालों के लिए ‘शांति से आराम करने’ से पहले अभी भी मीलों का सफर बाकी है। हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हथियारों के पहले प्रयोग के लगभग सत्तर साल बाद, लगभग 17,000 बम अभी भी मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा बने हुए हैं।
सामूहिक विनाश के इन हथियारों से लैस देश उन्हें बनाए रखने और उनके आधुनिकीकरण के लिए अगले दशक में अमरीकी डॉलर 1,000,000,000,000 से अधिक खर्च करने की योजना बना रहे हैं। दस वर्षों में एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक या प्रति वर्ष अमरीकी डॉलर 100,000,000,000।
हालांकि इस धन का अधिकतर परमाणु हथियारों से लैस देशों के करदाताओं की जेब से आता है, एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि निजी क्षेत्र भी फ्रांस, भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में परमाणु हथियारों का उत्पादन, रखरखाव और आधुनिकीकरण करने वाली निजी कंपनियों में अमरीकी डॉलर 314,349,920,000 से अधिक का निवेश कर रहा है।”
अच्छी खबर यह है कि दुनिया भर के 124 देशों ने, जिनमें परमाणु छतरी तले आने वाले जापान जैसे अनिच्छुक देश भी शामिल हैं, एक ऐतिहासिक वक्तव्य का समर्थन किया है जिसमें जोर देकर कहा गया है कि “किसी भी परिस्थिति में अब दोबारा कभी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह सम्पूर्ण मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है”।
वास्तव में, जैसा कि ICAN (परमाणु हथियारों को खत्म करने का अंतर्राष्ट्रीय अभियान) द्वारा दर्शाया गया है, अकेले 2013 में ही ऐसे राज्यों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है जिन्हें परमाणु हथियारों के मानवीय प्रभाव के निर्विवाद सबूतों के मद्देनजर परमाणु निरस्त्रीकरण की सीमित प्रगति के प्रति गहरी चिंता व्यक्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
मार्च 2013 में, परमाणु हथियारों के मानवीय प्रभाव पर नॉर्वे सरकार द्वारा ओस्लो में आयोजित सम्मेलन में यह निष्कर्ष निकला कि किसी परमाणु विस्फोट की स्थिति में किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया योजना को प्रभावी ढंग से लागू कर पाना काफी दुष्कर होगा।
सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण पर आयोजित प्रथम उच्च स्तरीय बैठक ने, परमाणु हथियारों से लैस राज्यों के प्रतिरोध के बावजूद, मानवीय दृष्टिकोण और परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के कई आह्वानों पर ध्यान केंद्रित किया। इसी गति को आगे बढ़ते हुए मैक्सिको सरकार ने नाभिकीय हथियारों के मानवीय प्रभावों पर विचार विमर्श के लिए एक कान्फ्रेंस की घोषणा की है, जो कि इस देश के प्रशांत तट पर स्थित नगर नायारित में 13 व 14 फरवरी, 2014 को आयोजित की जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम कमेटी में न्यू ज़ीलैंड द्वारा 21 अक्तूबर, 2013 को जारी किए गए संयुक्त घोषणा पत्र की महत्ता डच शांति संस्थान आईकेवी पैक्स क्रिस्टीव ICAN (परमाणु हथियारों को खत्म करने का अंतर्राष्ट्रीय अभियान) की संयुक्त स्टडी ‘डोंटबैंक आन द बांब’में उजागर की गई है।
इसी पृष्ठभूमि के अंतर्गत लगभग पचास वर्षों से विश्व को नाभिकीय हथियारों से मुक्त करवाने में संलग्न एक संस्था सोक्का गक्कई इंटरनैशनल (SGI)ने ‘नाभिकीय हथियारों के अमानवीय प्रभावों को उजागर करने व हर हालत में इनके प्रयोग को रोकने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नियम स्थापित करने के प्रयासों का स्वागत व समर्थन किया है’।
SGIसंस्था के शांति प्रयासों के कार्यकारी निदेशक हिरोत्सुगु तेरासाकी ने आईडीऐन को बताया कि इन हथियारों के विध्वंसकारी प्रभावों को देखते हुए यह ज़रूरी हो जाता है कि सभी सरकारें ‘ऐसा वक्तवव्य देने के लिए नैतिक रूप से बाध्य हों कि ऐसे किसी भी अस्त्र का प्रयोग अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों का घोर उल्लंघन होगा’।
साथ ही तेरासाकी, जो सोक्का गकाई के उपाध्यक्ष भी हैं, ने नाभिकीय हथियारों पर प्रतिबंध के मानवीय तर्क की कमियाँ भी गिनवाईं —जिनमें सबसे अहम था नाभिकीय अस्त्रों से लैस देशों का असहयोग।
इसी आशय में उन्होने आह्वाहन किया कि नाभिकीय अस्त्रों से लैस देशों में ओपिनियन लीडरों (राय बनाने में प्रमुख लोगों) व नीति निर्धारकों तक पहुँचने की सघन आवश्यकता है। ‘इनमें से कई नेताओं ने यह माना है कि निवारण का एक सिद्धान्त अब वास्तव में खोखला प्रतीत होने लगा है जब कि विश्व में कई स्थानों पर गैर राजकीय समूह नाभिकीय अस्त्रों की होड में लग गए हैं, और यह भी कि इस अस्त्रों से मुक्त विश्व वास्तविक रूप में एक सुरक्षित विश्व बन सकेगा‘।
तेरासाकी ने बताया कि अतः इस संदर्भ में सभ्य समाज के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती है कि ‘एक ऐसी आम भाषा तैयार की जाए जिसे नाभिकीय अस्त्रों से लैस राष्ट्र व बाकी सभी, दोनों तरह के देश आसानी से समझ सकें और एक सफल वार्तालाप संभव हो सके।
और ऐसा इसलिए क्योंकि ‘इन विध्वंसकरी अस्त्रों को नष्ट करने के व्यावहारिक व नैतिक, दोनों कारण मौजूद हैं। अतः इन्हें नष्ट करने के प्रयास एक वैश्विक प्रयास है, जिसमें सभी भागीदारों को रचनात्मक भूमिका निभानी है’।
नाभिकीय अस्त्रों से मुक्त विश्व के निर्माण में अभी मीलों की दूरी तय करना बाकी है; यही बात आईकेवी पैक्स क्रिस्टी व ICAN (परमाणु हथियारों को खत्म करने का अंतर्राष्ट्रीय अभियान) की संयुक्त स्टडी ‘डोंटबैंक आन द बांब’ में स्पष्ट उजागर की गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार विश्व भर में 298 निजी व सरकारी संस्थाएं नाभिकीय अस्त्रों के निर्माण, रख- रखाव व आधुनिकीकरण के काम में लीन 27 कंपनियों में 314 बिकलियन डालर निवेश करने की कगार पर हैं।
इस रिपोर्ट के कार्यकारी सारांश में उन सभी संस्थानों की सूची दी गई है जिनके नाभिकीय अस्त्र निर्माताओं के साथ वित्तीय रिश्ते हैं। इनमें से 175 उत्तरी अमरीका, 65 यूरोप, 47 एशिया प्रशांत, 10 मध्य पूर्व और एक अफ्रीका में स्थित है। कैरिबियन या दक्षिणी अमरीका में ऐसा कोई संस्थान नहीं है। वे बैंक या वित्त संस्थान जो सबसे गहरे रूप से इस काम में शामिल हैं वे हैं बैंक ऑफ अमेरिका, अमरीका में ब्लैक राक व जेपी मार्गण चेज़, यूके का रायल बैंक आफ स्काटलैंड, फ्रांस का बीऐनपी परीबा, जर्मनी का डौएश बैंक व जापान का यूएफजे फ़ाईनेंशियल। [आईडीऐन — इनडेप्थ न्यूज़ – अक्तूबर 28, 2013]