रॉडने रेनॉल्ड्स द्वारा
न्यूयार्क (आईडीएन) – संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून, जो “एक परमाणु हथियार रहित विश्व” में प्रवेश करने के लिए अपने लम्बे समय से चल रहे अभियान को जारी रखा है, उन्होंने बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण के भविष्य पर संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में “एक गहरे विभाजन” पर काफी निराशा व्यक्त की है।
एक तरफ, परमाणु हथियार वाले देश, अपने कई सहयोगियों के साथ, यह तर्क देते हैं कि उन्होंने अपने हथियारों को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, उन्होंने कहा।
दूसरी तरफ, गैर परमाणु हथियार वाले देश, निरस्त्रीकरण वार्ता की कमी; हजारों परमाणु हाथियों की अटलता; और 1 ट्रिलियन से अधिक लागत के साथ भविष्य में दशकों से मौजूदा परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण की तरफ इशारा कर रहे हैं, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी’स स्कूल ऑफ़ प्रोफेशनल स्टडीज के सामने 22 नवम्बर को एक मुख्य भाषण में बान ने कहा।
एक विदाई भाषण में, काफी हद तक शिक्षाविदों, शांति कार्यकर्ताओं और परिमाणु विरोधी समूहों की एक सभा में, बान जिनेवा आधारित संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण सम्मलेन (सीडी) को लेकर गंभीर थे, जो लगभग 20 साल से ठहरा हुआ था जिसमें एक महासचिव के रूप में उनका 10 साल का कार्यकाल भी शामिल था, तब भी जब उन्होंने 31 दिसम्बर को कदम रखा।
चूंकि उन्होंने जनवरी 2007 में फिर से महासचिव का पदभार संभाल लिया, बान ने कहा वह कई बार जिनेवा जाते रहे हैं और निरस्त्रीकरण पर सम्मलेन को संबोधित करते रहे हैं। (24 अक्टूबर 2009 को संयुक्त राष्ट्र दिवस के मौके पर उन्होंने एक पांच सूत्री परमाणु निरस्त्रीकरण प्रस्ताव) प्रस्तुत किया।
उन्होंने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण मशीनरी “चिरकालिक गतिरोध में चला” गया है।
“आपको यह जानकर हैरानी होगी — [या] दो दशक से भी ज्यादा समय से, वे इस काम के कार्यक्रम को अपनाने में सक्षम नहीं हुए हैं। क्या आप विश्वास कर सकते हैं? बताने की जरूरत नहीं है, चलिए छोड़ दीजिए, काम में प्रगति की कमी है।”
उन्होंने निंदा की कि सीडी एक एजेंडे को भी अपनाने में सक्षम नहीं हुआ है।
“बीस साल से यह अस्तित्व में है, और मैं उन्हें चेतावनी देता आ रहा हूँ: यदि आपको इस तरीके में विश्वास है तो हमें निरस्त्रीकरण सम्मिलन में इस पर चर्चा करना होगा, हमें उन्हें किसी अन्य स्थान पर ले जाना होगा, लेकिन वे सुनते ही नहीं…आम सहमति प्रणाली के कारण, सिर्फ एक देश सम्पूर्ण 193 सदस्य देशों को रोक सकता है। यह एक एकदम अस्वीकार्य स्थिति है,” उन्होंने चेतावनी दी।
इस तरह की स्थिति को बिना किसी कार्रवाई के यथास्थिति बने देने रहने की कीमत चुकानी पड़ेगी – वे अभी भी अपनी जगह पर अड़े हैं। यह बेहद निराशाजनक है, बाण ने शिकायत करते हुए कहा।
उनकी चेतावनी इस चेतावनी के बावजूद, कि “निरस्त्रीकरण को एक संकट का सामना करना पड़ रहा है”, उन्होंने कूटनीतिक तरीके से आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से कठोर प्रो-परमाणु समर्थक से सीधे बात करने से परहेज किया जिन्होंने संकेत दिया कि दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों को संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर करने के बजाय अपनी रक्षा करने के लिए परमाणु की मदद लेनी चाहिए।
निरस्त्रीकरण की वर्तमान स्थिति पर उनकी टिप्पणियां मांगने पर, डॉ एम. वी. रमण, जो प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में विज्ञान और वैश्विक सुरक्षा पर आधारित कार्यक्रम में उन्होंने आईडीएन को बताया: “कई विकासों को देखते हुए, निरस्त्रीकरण के बारे में बात करने के लिए यह एक अजीब समय है जो इसे संभव बनाती है कि जल्द ही किसी समय सामने कोई प्रगति दिखाई देगी।”
उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी-अभी डॉनल्ड ट्रंप को चुना जिन्होंने खुद भी इस बात का संकेत दिया है कि वे परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच सम्बन्ध ख़राब हो गया है और उनके बीच का द्विपक्षीय हथियारों का भविष्य अंधकारमय है।
परमाणु हथियार रखने वाले अधिकांश देश, ख़ास तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका, अपने परमाणु हथियारों को आधुनिक बनाने या बढ़ाने में लगा हुआ है।
“महासचिव बान की-मून के त्यागपत्र के साथ, संयुक्त राष्ट्र की भूमिका भी अनिश्चित है। मेरे ख्याल से आशा की कई किरणों में से एक किरण यह है कि हाल ही में हुए वोट में संयुक्त राष्ट्र में अधिकांश देशों ने परमाणु हथियारों पर रोक लगाने के लिए एक संधि पर बातचीत शुरू करने लगे हैं,” डॉ रमण ने कहा।
“रुन या चिकन एंट्रेल को पढ़ने से इस बात का विश्वसनीय संकेत होगा कि राष्ट्रपति ट्रम्प अपने बयान से बदलते हुए निरस्त्रीकरण पर क्या कर सकते हैं,” एक्रोनिम इंस्टिट्यूट फॉर डिसार्ममेंट डिप्लोमेसी के डॉ रेबेका जॉनसन ने उल्लेख किया।
“वह एक आवारा व्यवसायी है, न कि एक राजनयिक। उनकी विश्वास प्रणाली है, जो अब इस चुनाव से मजबूत होता दिखाई दे रहा है, कि सफलता ही मायने रखती है, अल्पकालीन सौदे को पाने के लिए क्या कारगर है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि और किस चीज का बलिदान दिया गया है और दीर्घकालीन परिणाम क्या हो सकते हैं।”
डॉ जॉनसन ने कहा कि ट्रम्प अहंकारी अपवाद का प्रतिक है।
एक व्यवसायी होने के नाते उन्हें साफ़ तौर पर पर्यावरणीय, कर या अन्य विनियमों और कानूनों का पालन करने की आवश्यकता से नफरत थी, इसलिए इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर वह संयुक्त राष्ट्र और निरस्त्रीकरण संधि जैसे सामूहिक सुरक्षा व्यवस्थाओं को अस्वीकार करते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य संवेदनशील लोगों को दुर्भावनापूर्ण हिंसा से बचाने के लिए और सामूहिक विनाश और मानवीय आप्द्ताओं को रोकने के लिए सेना के काम करने की आजादी पर अंकुश लगाना है।
ट्रम्प एक “अंत, साधनों का औचित्य बताता है” किस्म के अभिमानी हैं, लेकिन जरूरी तौर पर एक परमाणु भक्त नहीं हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण से, वह शायद (रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर) पुतिन के साथ परमाणु हथियारों को कम करने के सौदे पर काम करने के लिए इच्छुक होंगे।
इसका उद्देश्य निरस्त्रीकरण नहीं बल्कि अतिरिक्त और अनावश्यक परमाणु अधिकारियों का भंडार लगाने की लागत को कम करना और 21वीं सदी के हथियार के संसाधनों को मुक्त करना होगा।
नकारात्मक दृष्टि से देखने पर, उन्होंने कहा: “ट्रम्प को लगता है कि परमाणु हथियार उपयोगी हैं, और सिर्फ परमाणु निषेध को मजबूत करने के पारंपरिक निवारक सन्दर्भों में ही नहीं, और यदि वह फैसला करते हैं कि अमेरिकी शस्त्रागार को अपना तरीका इस्तेमाल करना चाहिए तो वह भयानक लतियाँ कर सकते हैं और वे ऐसे-ऐसे खतरे मोल ले सकते हैं जिन्हें नियंत्रण नहीं किया जा सकता।”
“किसी भी मामले में, ट्रम्प दर्शाते हैं कि गैर-परमाणु देश लम्बे समय से क्या तर्क देते आए हैं – कि परमाणु हथियारों को सुरक्षित ढंग से संभालने वाला कोई नहीं है।”
उन्होंने कहा, ट्रम्प परमाणु व्यवस्था को बदलने और परमाणु हथियारों के उपयोग, तैनाती, उत्पादन, परिवहन, प्रसार और वित्तपोषण को रोकने की जरूरत पर इधर-उधर का औचित्य देते रहते हैं।
लेकिन अभी तक राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसकी उम्मीद नहीं की थी जिसकी वजह से 120 से भी अधिक देशों ने संयुक्त राष्ट्र वार्ता के लिए वोट किया।
(27 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा की निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति ने बहुपक्षीय परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता को आगे ले जाते हुए एक अद्भुत संकल्प लिया। ‘परमाणु हथियारों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए परमाणु हथियारों पर रोक लगाने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन पर बातचीत करने के लिए’)इस संकल्प के तहत 2017 में एक संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन का आयोजन किया जाएगा
डॉ जॉनसन ने तर्क किया कि ट्रम्प, परमाणु उन्मूलन के लिए मानवीय आवश्यकता पर जोर देते हैं, लेकिन दुनिया के दो-तिहाई से भी अधिक देशों ने पुतिन, किम जोंग उन, (नरेंद्र) मोदी, (थेरेसा) माय और बाकी सभी लोगों के कारण, और परमाणु क्लब और अमेरिकी प्रतिष्ठान में ली जाने वाली रूचि को देखते हुए अक्टूबर में परमाणु प्रतिबंध संधि पर बातचीत करने के लिए वोट किया जिसका मतलब था कि खुद राष्ट्रपति ओबामा भी अपने 2009 के ऊंची आवाज वाले प्राग भाषण के बाद निरस्त्रीकरण के मामले में आगे न बढ़ सके।
“इसलिए ट्रम्प या कोई ट्रम्प नहीं, निरस्त्रीकरण तभी होगा जब दुनिया के अधिकांश लोग जिम्मेदारी उठाएंगे, और जब ऐसा होगा तब उन्हें निस्संदेह इसका श्रेय मिलेगा!,” डॉ जॉनसन ने घोषणा की। [IDN-InDepthNews – 23 नवम्बर 2016]
आईडीएन इंटरनेशनल प्रेस सिंडिकेट का एक फ्लैगशिप है।