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Reporting the underreported threat of nuclear weapons and efforts by those striving for a nuclear free world. A project of The Non-Profit International Press Syndicate Japan and its overseas partners in partnership with Soka Gakkai International in consultative status with ECOSOC since 2009.

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UN Treaty Paves the Way for a Nuclear-Weapons-Free World – Hindi

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संयुक्त राष्ट्र की संधि परमाणु हथियार मुक्त दुनिया के लिए मार्ग तय करती है

सेर्गियो दुराते (Sergio Duarte) का  दृष्टिकोण

लेखक विज्ञान और विश्व मामलों संबंधी पगवाश सम्मेलनोंके अध्यक्ष हैं। निशस्त्रीकरण मामलों के  लिए संयुक्त राष्ट्र के  पूर्व उच्च प्रतिनिधि।

न्यूयॉर्क (आईडीएन) – 22 जनवरी को परमाणु हथियार निषेध संधि (टीपीएनडब्ल्यू) के लागू होने से सकारात्मक अंतरराष्ट्रीय कानून में इस नए जुड़ाव के महत्व और उल्लेखनीयता के संबध में अलग-अलग स्थानों से टिपपणियों को प्रेरित किया। इसके अनुच्छेद 15.1 के अनुसार संधि 50वां अनुसमर्थन प्रपत्र जमा होने के 90 दिन बाद लागू हुई। अभी तक, 86 राष्‍ट्रों ने हस्ताक्षर किए और 52 राष्ट्र पहले ही इसका अनुसमर्थन कर चुके हैं।  

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटरेज़ (António Guterres) ने यह कहते हुए प्रशंसा की कि यह संधि परमाणु हथियार मुक्त विश्व की ओर एक महत्वपूर्ण कदम  है और सभी देशों से निवेदन किया कि वे हमारी साझा संरक्षा और सामूहिक सुरक्षा के लिए इस विजन को वास्तविक बनाने के लिए एकजुट होकर काम करें। दुनिया के कई हिस्सों में मीडिया ने इस तथ्य को उजागर किया कि टीपीएनडब्‍ल्यूऐसा पहला प्रपत्र है जो सभी परमाणु हथियारों को प्रतिबंधित करता है और परमाणु सशस्त्र राष्ट्रों द्वारा इसके भारी विरोध को नोट किया।

परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों और उनके सहयोगियों सहित अनेक देशों में सभ्‍य समाज के संगठनों और लोक मत ने संधि के लागू होने को सामूहिक विनाश के हथियारों की अंतिम स्थायी श्रेणी से दुनिया को छुटकारा दिलाने वाले ऐेतिहासिक कदम  के रूप में मनाया।

परमाणु वैज्ञानिकों के  बुलेटिन के एक लेख में 22 जनवरी को, अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री विलियम पैरी ने लिखा था: प्रतिबंध संधि उन्मूलन को, एक अनिश्चित भावी लक्ष्‍य की अपेक्षा, मानक के तौर पर सही स्थापित करती है कि जिसे हासिल करने के लिए सभी राष्‍ट्रों को सक्रिय रूप से काम करना चाहिए” और अपने इस शक्तिशाली लेख को यह कहते हुए समाप्त किया किअमेरिका अग्रणी राष्‍ट्र  होने पर गर्व महसूस करता है; आइये हम पहला परमाणु सशस्त्र राष्‍ट्र बने जो इस नई राह को पमाणु-मुक्त शीर्ष पर ले जाएगा।[1]

वही तर्क जिसने हथियारों की दो अन्य श्रेणियों  जीवाण्विकी (जैविक) और रासायनिक[2] को प्रतिबंधित करने वाली संधियों के लिए बातचीत करने और उन्हें अंगीकार करने का सफलतापूर्वक समर्थन किया और बढ़ावा दिया   निश्चित तौर पर परमाणु हथियारों के निषेध का समर्थन करता है। परमाणु अप्रसार संधि के अनुच्छेद II में निविष्ट आंशिक निषेधों और टीपीएनडब्‍ल्यू द्वारा निर्धारित संपूर्ण प्रतिबंध जो प्रत्येक पक्ष पर लागू होता है, चाहे उनके पास परमाणु हथियार हों या नहीं, के बीच खासा अंतर है।

इसके विशिष्ट मानवीय दृष्टिकोण के अलावा, परमाणु परीक्षणों के पीडि़तों को सहायता की बाध्यता सहित – यह एनपीटी जैसे पिछले प्रपत्रों में गैर-परमाणु राष्ट्रों द्वारा पहले से की गई प्रतिबद्धता को मजबूत करती है, और इस सिद्धांत को तय करती है कि उन मूलभूत सिद्धांतों के तहत परमाणु हथियार स्वीकार्य नहीं हैं जो राष्ट्रों के बीच नागरिक संबंधों को मजबूत करते हैं। संधि परमाणु हथियारों के विकास, विनिर्माण और जमावड़े के विरुद्ध शक्तिशाली निर्देशात्मक और नैतिक बल को संगठित करती है।     

टीपीएनडब्‍ल्यूकिसी राष्ट्र के प्रति विशेष तौर पर निर्देशित नहीं है और ना ही यह एकपक्षीय निरशस्त्रीकरण की पैरवी करती है। संधि में शामिल होने वाले परमाणु हथियार रखने वाले राष्ट्रों को अनुच्छेद 1 और 4 के अनुसार कार्रवाई करनी होगी, जिसमें निरशस्त्रीकरण की प्रक्रिया के दौरान आपसी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हथियार रखने वाले राष्ट्रों के बीच ठोस प्रबंध किए जाने की मनाही नहीं है।

वास्तव में, परमाणु हथियार वाले राष्ट्रों ने भूतकाल में अपने बीच कई तदर्थ प्रपत्रों पर बातचीत की है जिनका उद्देश्य अपनी सुरक्षा के लिए सटीक रूप से सामान्य उपाय ढूंढना है। दशकों की शत्रुता और अविश्वास के कारण एकत्रित हुए प्रचूर अनुभव को भ्रामक सैन्य और रणनीतिक श्रेष्ठता की अंतहीन एवं फलहीन दौड़ की बजाय संघटित रूप से उनके अंतिम उन्मूलन से सम्बद्ध परमाणु हथियारों को क्रमिक रूप से कम करते हुए सुरक्षा की मांग करने के लिए स्थानांतरित किया जा सकता है।

अपनी खुद की स्थिरता को सही ठहराने के प्रयोजन से दूसरों के परमाणु ह‍थियारों के जखीरे का हवाला देना उचित नहीं है। सभ्यता का विनाश करने वाले हथियारों को रखना कतई भी न्यायोचित नहीं है। अगर ऐसा होता, तो सभी राष्ट्रों के पास उन्हें अधिगृहित करने के वाजिब कारण होते। अकसर बार-बार दोहराया जाने वाला वाक्यांश कि “हम परमाणु हथियार तब तक रखेंगे जब तक उनका अस्तित्व है” जो परमाणु हथियार मुक्त दुनिया के कथित उद्देश्य को प्राप्त करने के कारगर उपायों को तैयार करने के सामान्य विकल्पों पर भी विचार किए जाने की अनिच्छा की स्व-सेवा अभिव्यक्ति है।

परमाणु निशस्त्रीकरण अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मनमानी और धमकियों को प्रतिस्थापित करेगा। टीपीएनडब्ल्यू के कुंद, क्षुब्ध विद्वेष की बजाय परमाणु हथियार वाले राष्ट्र बेहतर काम करेंगे यदि वे नई संधि के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने का चुनाव करते हैं।

कई समालोचको ने इस तथ्य पर जोर दिया है कि परमाणु निशस्त्रीकरण संधि जिसमें मौजूदा परमाणु हथियार संपन्न राष्‍ट्र शामिल नहीं होते हैं, वह प्रभावी नहीं है। यह निश्चित है कि टीपीएनडब्ल्यू वास्तव में परमाणु हथियार रखने वाले राष्ट्रों की भागीदारी के बिना अपने उद्देश्य को पूरी तरह प्राप्त करने में सक्षम नहीं होगी। हालांकि, यह अपना फोकस सैन्य विरोध की बजाय इस मौजूदा मुद्दे का समाधान करने के लिए व्यापक सर्वसम्मति बनाने की जरूरत पर स्थानांतरित करती है।

जो राष्ट्र अपने परमाणु शस्त्रीकरण के मूल्य का गुणगान करते हैं वो ना तो अपनी खुद की आबादी और ना ही दुनिया के विश्व जनमत को यह भरोसा दिलाने में समर्थ होते हैं कि उनकी तथा इस ग्रह की सुरक्षा बेहतर ढंग से कथित धमकियों के जवाब में अतिशय विनाश पर भरोसा करने से होगी। परमाणु हथियारों वाले राष्ट्रों के सहयोगियों सहित विश्व भर में मतदान दर्शाते हैं कि परमाणु हथियारों को पूरी समाप्त करने के प्रभावी, कानूनी तौर पर बाध्यकारी, सत्यापनयोग्य और समयबद्ध उपायों के लिए मजबूत लोकप्रिय समर्थन होगा।

परमाणु हथियार वाले राष्ट्रों के कुछ हिस्सों से उठने वाली आवाज़ों ने तर्क दिया है कि टीपीएनडब्ल्यू के लागू होने से विकास, अनुसंधान और उत्पादन को सक्षम बनाने वाले राष्ट्रों,एजेंसियों और निहित स्वार्थों पर पड़ा दबाव केवल सुस्थापित लोकतांत्रिक संस्थानों वाले देशों में महसूस होगा जहां जनमत सरकारों तथा अन्य कर्ताओं के व्यवहार को प्रभावित करने में सक्षम होता है। यह केवल आधा सच है: सभी समाजों में जनता ने अपनी आकांक्षाओं को कार्रवाई में तबदील करने के तरीकों को खोज लिया है।

जैसा कि दुनिया का इतिहास स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मतरवैया और मान्यताएं हमेशा निरंकुश और दमनकारी शासन द्वारा खड़ी बाधाओं को पार करने में सक्षम रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून राजनीतिक व्यवस्थाओं की परवाह किए बिना सभी पर लागू होता है। आंतरिक दबाव केवल सभ्य समाज से नहीं होता है: वे सार्वजनिक घोषणाओं या अन्य राष्ट्रों द्वारा किए गए निजी सीमांकनों सेसाथ ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों सेप्रतिष्ठित व्यक्तित्वों द्वारा लिए गए पदों से और सार्वजनिक विवेक की सामान्य ताकत से आते हैं। आयुध की संवेदनहीन दौड़ के साथ हताशा और प्रगति की कमी से हर जगह जनता की राय का समर्थन बढ़ता है जिससे परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रभावी उपायों में भी वृद्धि होगी।

51-सालपुरानीपरमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी)के सभी सदस्य इसकी प्रस्तावना से प्रतिबद्ध हैं, जो परमाणु निशस्त्रीकरण और विशेष तौर पर अतिशीघ्र परमाणु हथियारों की दौड़ को रोकने और परमाणु निशस्त्रीकरण से संबंधित प्रभावी उपायों के लिए सद्भावना से बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए इसके VI अनुच्छेद की दिशा में अतिशीघ्र प्रभावी उपाय करने की मंशा की घोषणा करती है।

परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि पर बातचीत करने और इसे अपनाने वाले 122 राष्ट्रों ने बिल्कुल ऐसा करके उदाहरण दिया है। उनके प्रयास की सराहना की जानी चाहिए और इसे खारिज या नजरअंदाज करने की बजाय इनका अनुसरण किया जाना चाहिएताकि परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन को अंततः हासिल किया जा सके।

परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के पक्षकार – जिन्हें व्यापक रूप से परमाणु निशस्त्रीकरण और अप्रसार शासन की आधारशिला माना जाता है” – उन्हें परमाणु निशस्त्रीकरण की बाध्यताओं का लगातार उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।परमाणु हथियारों के खतरे से दुनिया को छुटकारा दिलाने और उस संबंध में प्रभावी कार्रवाई पर सहमत होने के महत्वपूर्ण और तत्काल कार्य के लिए टीपीएनडब्ल्यू के बहुमूल्य योगदान को मान्यता देने के लिए उन्हें आगामी एनपीटी समीक्षा सम्मेलन द्वारा पेश किए गए अवसर का लाभ उठाना चाहिए। इसके लागू होने सेटीपीएनडब्ल्यू अब इस प्रयास का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई है। [आईडीएन-इलडेप्थन्यूज – 28 जनवरी 2021]

छविपरमाणु हथियारों के साथ दुनियापरमाणु हथियारों से मुक्त दुनियामाइकेल पी., पोलैंडआर्ट फॉर पीस।  श्रेयपार्टसाइड

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